1950 के संकल्प द्वारा योजना आयोग की स्थापना के समय इसके कृत्यों को इस प्रकार परिभाषित किया गयाः
क. देश में उपलब्ध तकनीकी कर्मचारियों सहित सामग्री, पंजी और मानव संसाधनों का आकलन और राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुरूप इन संसाधनों की कमी को दूर करने हेतु उन्हें बढ़ाने की सम्भावनाओं का पता लगाना,
ख. देश के संसाधनों के सर्वाधिक प्रभावी तथा संतुलित उपयोग के लिए योजना बनाना
ग. प्राथमिकताएं निर्धारित करते ऐसे क्रमों को परिभाषित करना जिनके अनुसार योजना को कार्यान्वित किया जाये और प्रत्येक क्रम को यथोचित पूरा करने के लिए संसाधन आवंटित करने का प्रस्ताव रखना;
घ. ऐसे कारकों के बारे में बताना, जो आर्थिक विकास में बाधक है और वर्तमान सामाजिक तथा राजनीतिक स्थिति के दृष्टिगत ऐसी परिस्थितियां पैदा करने की जानकारी देता जिनसे योजना को सफलतापूर्वक निष्पादित किया जा सके।
ड़. इस प्रकार के तंत्र का निर्धारण करना जो योजना के प्रत्येक पहलु को एक चरण में कार्यान्वित करने हेतु जरूरी हो।
च. योजना के प्रत्येक चरण में हुई प्रगति का समय-समय पर मूल्यांकन और उस नीति तथा उपायों के समायोजना की सिफारिश करना जो मूल्यांकन के दौरान जरूरी समझे जाएं।
घ. ऐसी अंतरिम या अनुषंगी सिफारिशे करना जो उसे सौंपे गए कर्तव्यों को पूरा करने के लिए उचित हो अथवा वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों, चालू नीतियों उपायों और विकास कार्यक्रमों पर विचार करते हुए अथवा परामर्श के लिए केंद्रीय या राज्य सरकारों द्वारा उसे सौंपी गई विशिष्ट समस्याओं की जांच के बाद उचित लगती हों;
एक आयामिक केंद्रित योजना प्रणाली की जगह भारतीय अर्थ व्यवस्था निदेशक योजना की ओर बढ़ रही हैं जिसमें योजना आयोग ने भविष्य के लिए दीर्घकालीन रणनीति तैयार करने और राष्ट्र के लिए प्रथमिकताएं निर्धारित करने का उत्तरदायित्व समभाला है। यह सेक्टर वार लक्ष्य निर्धारित कररता है और अर्थ व्यवस्था को वैंछित दिशा में लजाने के लिए प्रोत्साहन और प्रेरणा की व्यवस्था करता है।
मानव विकास और आर्थिक विकास के अति महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए नीति तैयार करने हेतु बढ़िया दृष्टिकोण पैदा करने के लिए योजना आयोग एकीकृत भूमिका निभाता है। सामाजिक क्षेत्र में ग्रामीण स्वास्थ्य, पेय जल, ग्रामीण ऊर्जा की जरूरतों, साक्षरता और पर्यावरण संरक्षण जैसी स्कीमों के लिए समन्वय और सामंजस्य की जरूरत है। अभी इनके लिए समन्वित नीति तैयार किया जाना शेष है। इस कारण ऐजेंसियों की बहुतायत हो गई है। एकीकृत दृष्टिकोण से काफी कम खर्च में अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
आयोग इस बात पर बल देता है कि हमारे सीमित संसाधनों का उपयोग ऐसे अच्छे ढंग से हो कि उनसे अधिकतम उत्पादन हो सके। केवल योजना परिव्यय में वृद्धि करते जाने के स्थान पर प्रयास यह है कि आवंटित राशियों का उपयोग करने की कुशलता में वृद्धि हो।
उपलब्ध बजट संसाधनों की अत्यधिक कमी महसूस होने के कारण राज्यों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों के बीच संसाधन आवंटन प्रणाली पर काफी जोर पड़ रहा है। इसलिए योजना आयोग को सभी संबंधित पक्षों का ध्यान रखते हुए मध्यस्थ की भूमिका निभानी पड़ रही है। आयोग को शांतिपूर्ण परिवर्तन करके सरकार में अधिक उत्पादकता और कुशलता की संस्कृति लाने में सहायता करनी है।
संसाधनों के कुशल प्रयोग की कुंजी यह है कि सभी स्तरों पर स्वयं अपनी व्यवस्था बनाने वाले संगठन बनाए जाएं। इस क्षेत्र में प्रणाली बदलाव लाने और सरकार के बीच ही बेहतर प्रणालियां विकसित करने के लिए सलाह देने हेतु योजना आयोग अपनी भूमिका निभाने का प्रयास कर रहा है। प्राप्त अनुभवों का लाभ फैलाने के लिए जानकारी विस्तारित करने की भूमिका भी योजना आयोग निभा रहा है।