ग्रामीण विकास प्रभाग की मुख्य कृत्य ग्रामीण विकास के लिए योजनाएं और कार्यक्रम तैयार करने के लिए समग्र मार्गनिर्देश प्रदान करना है। गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन, वाटरशेड और अनउपजाऊ भूमि का विकास करने संबंधी मामलों के लिए यह संकेन्द्रित प्रभाग है। प्रभाग द्वारा विशिष्ट रुप से निम्नलिखित कार्य किए जाते हैं:
ग्रामीण विकास प्रभाग ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किए जाने वाले निम्नलिखित कार्यक्रमों का काम संभालता है:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
यह अधिनियम, 2 फरवरी, 2006 को लागू किया गया और इसके कार्य का एक वर्ष 2006-07 को पूरा हुआ। यह 200 जिलों में लागू हो गया। यह कार्यक्रम 2007-08 में 330 जिलों तक बढ़ाया गया और 1.4.08 से इसे देश भर में आरंभ कर दिया गया। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी भी परिवार को जो रोजगार का इच्छुक है 100 दिन के लिए रोजगार की गारंटी दी जाए। यद्यपि सभी परिवार इसके लिए पात्र हैं तथापि अपेक्षा यह की जाती है कि केवल अतिनिर्धन अर्थात भूमिहीन श्रमिक और सीमांत किसान ही वास्तव में इस कार्य को करेंगे। इसका दूसरी उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ऐसे निर्माण कार्य से रोजगार मिले जिनसे भूमि की उत्पादकता में वृद्धि हो।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना
ग्रामीण गरीबों के लिए स्वरोजगार की यह एक मुख्य चालू स्कीम है। इसका बुनियादी उद्देश्य यह है कि सहायता प्राप्त गरीब परिवारों (स्वरोजगारियों) को बैंक ऋण और सरकारी सहायता को मिलाकर आमदनी पैदा करने के साधन मुहैया करा कर गरीबी रेखा से ऊपर उठाया जाए। ऋण इस स्कीम का महत्वपूर्ण घटक है जबकि सरकारी सहायता सक्षम बनाने का तत्व है। इस स्कीम का लक्ष्य यह भी है कि गरीबों को स्वय अपनी सहायता करने वाले ग्रुपो में संग्रहित किया जाए और सामाजिक एकजुटता, प्रशिक्षण, महत्वपूर्ण गतिविधियों के चुनाव, गतिविधियों के ग्रुप की योजना बनाकर, संरचना निर्माण, तकनीकी ज्ञान की व्यवस्था और विपणन आदि की सुविधा देकर उनमें क्षमता का निर्माण किया जाए। स्कीम के अधीन ग्रुप दृष्टिकोण पर बल दिया जाता है। तथापि निजी स्वरोजगारियों को भी सहायता दी जाती है। यह योजना जिला ग्रामीण विकास एजेंसी द्वारा लागू की जा रही है, पर इसमें पंचायती राज संस्थान, बैंक, लाइन प्रभाग तथा गैर-सरकारी संगठन भी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
इस योजना के अधीन ऋण जुटाने का काम बहुत ही कम हुआ है। साथ ही अनेक स्वयं-सहायता ग्रुप बनते जरुर हैं लेकिन आवर्ती निधि का लाभ लेकर बीच में ही गायब हो जाते है। इस स्कीम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसकी पूनः संरचना कर इसमें गरीबों में भी सबसे अधिक गरीब को लाने पर बल दिया जा रहा है। अत्यधिक सामाजिक एकजुटता, क्षमता निर्माण और लक्षित जनसंख्या के बीच संस्थान निर्माण के लिए उपयुक्त तंत्र को शीघ्र ही स्थापित किया जाएगा।
इंदिरा आवास योजना
इस योजना को 1966 से एक स्वतंत्र स्कीम के रूप में लागू किया जा रहा है। इसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अनु.जा., अनु.ज.जा., तथा मुक्त कराए गए बंधक मजदूरों और गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों को रिहायशी एककों के निर्माण/उनकों उन्नत करने के लिए सहायता दी जाए। मैदानी क्षेत्रों में यह सहायता अधिकतम 35000रु. प्रति एकक तथा पहाड़ी /दुर्गम क्षेत्रों में 38500 रु. प्रति एकक है। सबी क्षेत्रों एकक-सुधार के लिए 15000/- रु. दिए जाते हैं। इंदिरा आवास योजना का वित्त पोषण केंद्र राज्यों के बीच 75.25 के आधार पर किया जाता है। संघ शासित प्रदेशों में यह 100% है।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (रा.सा.स.का)
इस कार्यक्रम को शुरु करने का उद्देश्य गरीब परिवार में वृद्ध, रोटी कमाने वाले की मृत्यु तथा प्रसुता को सामाजिक सहायता का लाभ देना है। यह कार्यक्रम राज्य सरकारों के कार्यक्रमों की पूर्ति करता है ताकि सामाजिक भलाई के न्यूनतम राष्ट्रीय स्तर के उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके। यह केंद्रीय सहायता लाभ के अतिरिक्त है जो राज्य संरक्षण स्कीमों के अधीन देती है। पोषण और राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों के साथ बेहतर संपर्क बनाए रखने के लिए प्रसुता लाभ घटक को स्वास्थ्य और परिवाकर कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को 2001-02 से अंतरित कर दिया गया है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम और अन्नपूर्ण स्कीमों को 200-03 से राज्य योजना में अंतरित किया गया है। ताकि राज्य/संघ शासित क्षेत्रों को चुनाव करने में लचीलापन हो और उन्हें सही ढंग से कार्यन्वित किया जा सके।
एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम
ग्यारहवीं योजना के दैरान तीन क्षेत्र विकास कार्यक्रमों अर्थात एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम, सूखा प्रवर क्षेत्र कार्यक्रम और रेगिस्तान विकास कार्यक्रमों को मिलाकर एक ही कार्यक्रम बना दिया गया है जिसे एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम कहा जाता है। यह मिलान संसाधनों के सर्वाधिक इस्तेमाल और स्थायी परिणामों की प्राप्ति को लिए किया गया है। इस कार्यक्रम के लिए सांझे मार्ग निर्देश तैयार किए गए हैं जो 1.4.2008 से लागू हो गए। वर्ष 2008-09 से पूर्व डीएडीपी, डीडीपी, और एकीकृत वाटरशेड के अधीन चालू परियोजनाएं पुराने मार्ग निर्देशों के अनुसारक चलती रहेंगी।
रुपांतरित एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम तीन स्तरीय दृष्टिकोण अपनाएगा जिसमें सबसे ऊपरी क्षत्र में वन और पहाड़ियां है, वहां वन विभाग की सहायता से काम होगा। बीच के उतराई वाले क्षेत्रों में इस कार्यक्रम के अधीन यथा संभव सबसे बढ़िया ढ़ंग अपनाया जाएगा जिसमें बुआई का तरीका, बागबानी और कृषि वानिकी आदि द्वारा भूमि को ठीक किया जाएगा। निचले क्षेत्रों में जो मैदानी तथा कृषि योग्य भूमि है इस कार्यक्रम को रोजगार कार्यक्रमों जैसे राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम के साथ जोड़ा जाएगा ताकि दोनों एक दूसरे से लाभ ले सकें।
नए कार्यक्रम के अधीन 'क्लस्टर एप्रोच' को अपनाया जाएगा। इसमें मोटे तौर पर 4000 से 10000 हैक्टेयर औसतन आकार के प्राकृतिक जल-भूगोलीय लघु वाटरशेड क्लस्टर के एकक को परियोजना क्षेत्र के रूप में चुना जाएगा। केंद्र तथा राज्य स्तर पर निष्ठावान संस्थागत एजेंसियों द्वारा यह कार्यक्रम कार्यान्वित किया जाएगा। उपयुक्त विधि आवंटन द्वारा इन संस्थाओं को व्यावसायिक समर्थन (बहुत प्रवीण विशेषज्ञ दल रुप में) दिया जाएगा। स्थानीय परियोजना योजना के लिए नियंत्रित पहुंच/वितरण हेतु उपग्रह चित्रों से आकाशीय और गैर-आकाशीय आंकड़े उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके लिए जीआईएस की कोर सुविधा होगी।
यह परियोजना काल 5 से 7 वर्ष की अवधि का होगा इसे तीन चरणों में रखा जाएगा अर्थात तैयार, वाटरशेश निर्माण कार्य तथा समेकन/समेकनचरण में जीवन यापन गतिविधियां, विपणन, प्रक्रियागत तथा मूल्य संवर्द्धन गतिविधियां शामिल हैं।
राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम
राष्ट्रीय भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम की संकल्पना एक मुख्य प्रणाली और सुधार हेतु पहल के रुप में की गई है , जिसका संबंध न केवल भूमि अभिलेखों के कंप्यूटरीकरण, अद्यतन करने और अनुरक्षण और नामों के विदि मान्यकरण से है बल्कि विशिष्ट स्थल जानकारी प्राप्त होने से विकासात्मक योजना, विनियामक और आपदा प्रबंधन गतिविधियों के लिए व्यापक आंकडे उपलब्ध होंगे जिस से मूल्य संवर्द्धन होगा और नागरिकों को भूमि अभिलेख आंकडों पर आधारित सेवाएं उपलब्ध हो जाएंगी।
इस कार्यक्रम के अधीन जियोग्राफिक इन्फार्मेशन सिस्टिम प्लेटफार्म (जीआईएस) निम्नलिखित तीन परतों के आंकडे मिल सकेंगे: उपग्रह चित्रो, /हवाई फोटोग्राफी से आकाशीय आंकड़े, भारत का सर्वेक्षण, भारत के वनों का सर्वेक्षण के मानचित्र और राजस्व अभिलेख; केड़ास्ट्राल मानचित्र और आरओआर विवरण। सभी केडास्ट्राल मानचित्रो को डिडीटाइज्ड किया जाएगा और भूमि के प्लाट संख्या और प्रत्येक भूमि पार्सल को यूनीक आईडी मिलेगा। ग्राम स्तर से ऊपर की ओर (पंचायत, ब्लॉक, तहसील, सर्किल, सब-डिवीजन, जिला, डिवीजन, राज्य और राष्ट्रीय सीमाएं) प्रशासनिक तकक सीमाएं, वन, जल निकाय तथा भूमि की अन्य विशेषताएं और भूमि उपयोग विवरण तथा अन्य विकासात्मक परतों (जैसे वाटरशेड, सड़क नेटवर्क आदि) को 'कोर जीआईएस' के साथ जोड़ा जाएगा।
कार्यक्रम के अधीन जिन गतिविधियों को समर्थन दिया जाएगा उनमें, अन्य बातों के साथ-साथ सर्वेक्षण/आधुनिक तकनीक के प्रयोग से पुनः सर्वेक्षण जैसे हवाई फोटोग्राफी, म्यूटेशन रिकार्ड सहित भूमि अभिलेखों के अद्यतन बनाना, अधिकारों के रिकार्ड (आरओआर) के कंप्यूटरीकरण को पूरा करना, रजिस्ट्रेशन का कंप्यूटरीकरण, म्यूटेशन नोटिस का स्वयमेव तैयार होना, मानचित्रों का डिजीटाजेशन, पूरी प्रणाली का एकीकरण तथा उसके मानचित्रों का डिजीटाइजेशन और प्रशिक्षण तथा संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों की क्षमता का निर्माण।
तहसील/ताल्लुक/सर्किल/ब्लॉक स्तर पर भूमि रिकार्डों तथा रजिस्ट्रशन कार्यालयों और भूमि रिकार्ड प्रबंधन केंद्रों के बीच संपर्क को समर्थन दिया जाएगा। ऋण सुविधाएं प्रदान करने के लिए सहकारी समिति तथा अन्य वित्तीय संस्थानों को भूमि रिकार्ड देखने की सुविधा होगी।
कार्यक्रम में नागरिक सेवाएं जैसे मानचित्र के साथ रिकार्ड ऑफ राइट्स (आरओआर), अन्य भुमि आधारित प्रमाणपत्र जैसे जाति प्रमाणपत्र, आय प्रमाण पत्र (विशेष रुप से ग्रामिण क्षेत्रों में अधिवास प्रमाण पत्र विकास कार्यक्रमों के लिए पात्रता सबंधी जानकारी भूमि पास बुक आदि उपलब्ध करना पर बल दिया जाएगा।
इसके अतिरिक्त यह कार्यक्रम केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा - भूमि राजस्व प्रशासन में आधुनिकीकरण और कार्यकुशलता बढ़ने के साथ-साथ स्थल विशिष्ट जानकारी के कारण विभिन्न भूमि आधारित विकासात्मक योजनाओं, विनियामक और आपदा प्रबंधन गतिविधियों के सरकारों के पास एक व्यापक माध्यम होगा। यहां तक कि गैर-सरकारी क्षेत्र को भी व्यापार की योजनाओं तथा आर्थिक गतिविधियों के लिए इस कार्यक्रम का व्यापक लाभ मिलेगा।
जैसा ऊपर इंगित किया गया है, इस कार्यक्रम का अनुमोदन मंत्रीमंडल ने 21.8.2008 को अपनी बैठक में किया था। चालू वर्ष (2008-09) में स्कीम के लिए बजट व्यवस्था 473.00 करोड़ रू. है। तद्नुसार यह प्रस्ताव है कि इस कार्यक्रम को अगले 5 से 8 वर्ष के भीतर संपूर्म देश में लागू किया जाए। स्कीम के घटकों का राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों के राजस्व प्रशासन में पूरी तरह एकीकरण हो जाएगा। और यह चालू स्कीम के रूप में कार्य करेगी।